आज कल बहुत शोर है उसकी आजादी को लेकर,
"मालूम है ? उसकी गुलामी युगों से है....."
"उसे बराबरी का दर्जा देने का वक्त आ चुका है ..."
सुना तो ये भी है कि "बहुत जल्द युग-परिवर्तन होगा..... "
कई जगह ऊँची आवाज़ में बड़ी बड़ी ढेर सारी बातें हो रही हैं
पर सच तो ये कि,
वो जीवन की नाँव रेत में खेती है,
कहीं माँ, कहीं पत्नी, कहीं बहन, कहीं बेटी है,
औरत है !
ना जीती है ना मरती है.....
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