Tuesday, November 29, 2011

इसके मन में शायद कोई तूफ़ान लगता है....


ओढ़कर अपने कमरों की खिड़कियाँ,
अंधेरों में जा छुपा हर आसमान लगता है,

कई सालों साल जहाँ चिड़ियों ने घर बनाये,
वो देखने में सिर्फ रोशनदान लगता है,

एक मुद्दत से ठहरे पानी में कंकड फेंकता है,
इसके मन में शायद कोई तूफ़ान लगता है,

हर वक्त, वक्त की दहलीज़ की दुहाई देता है,
दरवाजे के पीछे इसका कोई टूटा मकान लगता है,

बे-कस* है ये, ये शक्स बड़ा जिद्दी है,
रसमी*  है, भरी दुनिया में मेहमान लगता है,

बुत से रहने लगे हैं, जिंदा लोग यहाँ,
पत्थर शायद इसीलिए भगवान लगता है, 

सब की सुनता हूँ, अपने हाल में रहता हूँ,
लोग कहते हैं - नेक है, नजीब* है,  भला इंसान लगता है,

यहाँ हर तरफ एक बाजार सा है 
हर इंसान अपने आप में एक दुकान लगता है,

मैं मुफ्त बाँटता हूँ खुशी और उम्मीद,
इसलिए सबको ये 'सस्ता' सामान लगता है....


*बेकस = अकेला,  *नजीब = दयालु,  *रसमी = Formal

1 comment:

  1. bahut khoob, aap aise hee khushiyan aur ummed baantate rahe, bahut kami hai iski humare aas paas

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