Thursday, December 15, 2011

31 दिसंबर....

31 दिसंबर हम सब एक अनोखी रात बिताएंगे, अपनी बेबसी का जश्न मनाएंगे,
उस रात सपने खोखली बांसुरी बजायेंगे, हमें लगता है शायद हम, सब गम भूल पायेंगे,
बस इसी बात पर...


तमाशाइयों ने कल रात बहुत तालियाँ बजाईं
अंधेरों में छुपी अँगुलियों ने कठपुतलियाँ नचाईं
माचिस की तीलियां भीग गयी थीं बरसात में,
रात सिरहाने के पत्थर रगड़ थोड़ी आग जलाई,
उनके मकानों के शीशे बड़े मज़बूत हैं,
कौन जाने कब उन्होंने बंद कमरों में शहनाई बजाई,
वो यूं तो कभी मुफलिस ना हुए होते,
पड़ोस देखकर शायद चादर से बाहर टांग फैलाई,
नहीं बदलता हर साल कुछ भी आदमी के सिवा,
मुँह छुपाने के लिए ही शायद ये तारीख बनाई... 

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